ज़माने को जब भी हँसाना पड़ेगा |
अकेले में ख़ुद को रुलाना पड़ेगा ||
लगाया है दिल तो निभाना पड़ेगा |
हमेशा ही ख़तरा उठाना पड़ेगा ||
मनाना पड़ेगा रिझाना पड़ेगा |
रक़ीबों से उनको बचाना पड़ेगा ||
दिखाओगे ज़ख़्मों को जब भी किसी को |
दुबारा से मरहम लगाना पड़ेगा ||
यहाँ रोज़ कटते हैं सर उठने वाले |
तुम्हें सर यहाँ पे झुकाना पड़ेगा ||
हवाओँ से ख़तरा जहाँ पर बड़ा हो |
दिए को संभल कर जलाना पड़ेगा ||
पिएगा न बच्चा दवाई है कड़वी |
ज़रा सा तो मीठा मिलाना पड़ेगा ||
न जाने वो आये किधर से निकल के |
सभी रास्तों को सजाना पड़ेगा ||
मिलेगी न कोई यूं ही दाद उनसे |
तराना मुक़ममल सुनाना पड़ेगा ||
नशेमन में अपने सजा तो ली महफ़िल |
मना कर उन्हें भी बुलाना पड़ेगा ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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