Wednesday, 23 November 2011

हर तरफ़ तोपख़ाने


हर  तरफ़   तोपख़ाने    लगे |
मौत   के   शामियाने   लगे ||

ज़द  में   सारे  नगर   आगये |
इस  तरह  से  निशाने   लगे ||

कैसी  मज़हब  परस्ती  है  ये |
लोग   मिटने   मिटाने   लगे ||

बढ़   रही   सबकी   बैचेनियाँ |
साए  ग़र्दिश   के  छाने  लगे ||

इक  शरर  सा  लिए  हाथ  में |
वो   सभी   को   डराने    लगे ||

लोग आकर सियासत में अब |
ख़ूब     ख़ाने    कमाने     लगे ||

राज़   क्या  है  ये   साक़ी  बता |
जाम  हम  तक  भी आने लगे ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

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