हर तरफ़ तोपख़ाने लगे |
मौत के शामियाने लगे ||
ज़द में सारे नगर आगये |
इस तरह से निशाने लगे ||
कैसी मज़हब परस्ती है ये |
लोग मिटने मिटाने लगे ||
बढ़ रही सबकी बैचेनियाँ |
साए ग़र्दिश के छाने लगे ||
इक शरर सा लिए हाथ में |
वो सभी को डराने लगे ||
लोग आकर सियासत में अब |
ख़ूब ख़ाने कमाने लगे ||
राज़ क्या है ये साक़ी बता |
जाम हम तक भी आने लगे ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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