Monday, 28 November 2011

तेरा मर्तबा जितना


तेरा  मर्तबा  जितना  बड़ा  तेरी  सोच  उतनी  जदीद  है |
मुझे दोस्त तू जबसे मिला मेरा दिल तो तेरा मुरीद   है ||

तू  हमीद  है  तू  करीम  है  तू  हबीब  है  तू   वहीद  है |
हर हाल में तेरी हर  रज़ा  मुझे  मुद्दतों  से  मुफ़ीद  है ||

तेरे कितने ऊँचे ख़याल हैं तेरा कितना ऊँचा वक़ार  है |
मेरे सामने तेरा अक्स हो तो  मैं मान लू कि मजीद है ||

मेरे घर में तेरी ये हाजिरी तेरी रूह में  ये  जो  सादगी |
तुझे क्या बताऊँ मेरे लिए तेरी दीद कितनी   सईद है ||

तेरा हाथ कितना खुला हुआ तेरी रहमतें हैं ये बेहिसाब |
यूँ लुटा रहा है रहीम सा  न  गवाह  कुछ  न   रसीद  है ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी   

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