बंद आँखें मगर जगा हूँ मैं |
नींद से आज लड़ पडा हूँ मैं ||
क्यूँ नहीं आ रहे हैं ख़त उनके ?
रोज़ क़ासिद को डांटता हूँ मैं ||
कौन कहता है ख़ाली रहता हूँ ?
उनकी यादों में मुब्तला हूँ मैं ||
भूलने की क़सम उठा लूंगा |
तू अगर बोल दे बुरा हूँ मैं ||
ये जुबां साथ क्यूँ नहीं देती ?
जब भी तुझको पुकारता हूँ मैं ||
दिल में उनके उतर नहीं पाते |
ख़ूब अशआर कह रहा हूँ मैं ||
सब यही सोचते मुझे अक्सर |
सब यही सोचते मुझे अक्सर |
आदमी कुछ न काम का हूँ मैं ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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