बात ये ख़ूब जानता हूँ मैं |
ज़िंदगी में ठगा गया हूँ मैं ||
जिसकी अपनी नहीं कोई मंजिल |
एक भटका सा क़ाफिला हूँ मैं ||
कितना पीछे रहा हूँ लोगों से ?
बारहा मुड़ के देखता हूँ मैं ||
इक बयाबान सा लगे ख़ुद में |
जब कभी ख़ुद को सोचता हूँ मैं ||
ढूंढता फिर रहा हूँ मैं ख़ुद को |
आम चर्चा में लापता हूँ मैं ||
क्या जलायेंगे अब मुझे शोले ?
पेट की आग में जला हूँ मैं ||
मुझको तस्कीन क्यूं नहीं होती ?
ज़िन्दगी आपसे ख़फ़ा हूँ मैं ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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