Wednesday, 23 November 2011

अगरचे ख़ूबसूरत हो


अगरचे  ख़ूबसूरत  हो   सँवरना       सजना      पड़ता  है |
ग़ज़ल के शेर को  मीटर  में     उसके     रखना  पड़ता है ||

अगर मेहमाँ चले तब  अलविदा  तो     कहना    पड़ता है | 
ज़रा  सा  दूर तक  तो  साथ      उसके    चलना पड़ता  है || 

किसी  लेवल  से नीचे  सादगी  अच्छी        नहीं    लगती |
दिखावे  को  सही  पर  कुछ तो ऊपर     उठना    पड़ता है || 

उठा  कर  शान  से  सर  आप  चल  देते  हैं          लोगों  में |
मगर  औलाद  के   आगे  हमेशा  झुकना            पड़ता  है || 

भले    ही   आप   बच्चों       को       निवाले    दे   रहे  सूखे |
मगर मेहमान की  रोटी  को     तो नम    करना   पड़ता है || 

बुरी  लगती  है  अक्सर  यूँ  ही  स च्ची    बात    लोगों   को |
कहें क्या सच तो सच  है और सच को   सुनना      पड़ता है ||

सभी   ताबीर   तो   बनती   नहीं   हैं   ख्व़ाब      की      बातें |
किसी  मक़सद  की  ख़ातिर  ख्व़ाब  बेशक़  बुनना पड़ता है || 

शिकायत   तो   हमेशा   आबले      पाओं    से      करते  हैं |
ज़रा  दूरी  पे  घर  हो  तो  झपट     के      चलना  पड़ता  है || 

सभी  लोगों  से  जो  सच्चा  सभी  लोगों   से  जो   अच्छा |
हमेशा  एक  होता  है  उसी को  चुनना         पड़ता       है || 

डा० सुरेन्द्र  सैनी        

No comments:

Post a Comment