अगरचे ख़ूबसूरत हो सँवरना सजना पड़ता है |
ग़ज़ल के शेर को मीटर में उसके रखना पड़ता है ||
अगर मेहमाँ चले तब अलविदा तो कहना पड़ता है |
ज़रा सा दूर तक तो साथ उसके चलना पड़ता है ||
किसी लेवल से नीचे सादगी अच्छी नहीं लगती |
दिखावे को सही पर कुछ तो ऊपर उठना पड़ता है ||
उठा कर शान से सर आप चल देते हैं लोगों में |
मगर औलाद के आगे हमेशा झुकना पड़ता है ||
भले ही आप बच्चों को निवाले दे रहे सूखे |
मगर मेहमान की रोटी को तो नम करना पड़ता है ||
बुरी लगती है अक्सर यूँ ही स च्ची बात लोगों को |
कहें क्या सच तो सच है और सच को सुनना पड़ता है ||
सभी ताबीर तो बनती नहीं हैं ख्व़ाब की बातें |
किसी मक़सद की ख़ातिर ख्व़ाब बेशक़ बुनना पड़ता है ||
शिकायत तो हमेशा आबले पाओं से करते हैं |
ज़रा दूरी पे घर हो तो झपट के चलना पड़ता है ||
सभी लोगों से जो सच्चा सभी लोगों से जो अच्छा |
हमेशा एक होता है उसी को चुनना पड़ता है ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
No comments:
Post a Comment