कोई कहता है कुछ जुदा हूँ मैं |
कोई कहता है ख़ुदनुमा हूँ मैं ||
आईना मुझ पे ख़ूब हंसता है |
ख़ुद को जब भी संवारता हूँ मैं ||
जो मेरी ज़ात से जुड़े पूछे |
उन सवालों को टालता हूँ मैं ||
ज़हर पीकर नहीं मरा अब तक |
दार पर सर धरे खड़ा हूँ मैं ||
मैं बुरा बन गया हूँ बच्चों से |
उनके ख़्वाबों को तोड़ता हूँ मैं ||
होश अब आ गये ठिकाने पर |
इस ज़माने से ख़ारिजा हूँ मैं ||
जिसको पैदा किया मगर फेंका |
वो अमीरों का चोचला हूँ मैं ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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